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यु॒वोरु॒ षू रथं॑ हुवे स॒धस्तु॑त्याय सू॒रिषु॑ । अतू॑र्तदक्षा वृषणा वृषण्वसू ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yuvor u ṣū rathaṁ huve sadhastutyāya sūriṣu | atūrtadakṣā vṛṣaṇā vṛṣaṇvasū ||

पद पाठ

यु॒वोर् ऊँ॒ इति॑ । सु । रथ॑म् । हु॒वे॒ । स॒धऽस्तु॑त्याय । सू॒रिषु॑ । अतू॑र्तऽदक्षा । वृ॒ष॒णा॒ । वृ॒ष॒ण्व॒सू॒ इति॑ वृषण्ऽवसू ॥ ८.२६.१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:26» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:26» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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शिव शंकर शर्मा

आगे राजधर्मों का उपदेश करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अतूर्तदक्षा) हे अनिवारणीय शक्तिशाली (वृषणा) हे प्रजाओं में धनों की वर्षा करनेवाले (वृषण्वसू) हे वर्षणशील धनयुक्त ! हे राजन् ! हे मन्त्रिदल ! (युवोः+रथम्) आप लोगों के रथ को (सूरिषु+सधस्तुत्याय) विद्वानों की सभा में सबके साथ आदर करने के लिये (सु) साधुभाव से (हुवे) मैं बुलाता हूँ (उ) निश्चितरूप से ॥१॥
भावार्थभाषाः - पूर्व में भी कह आये हैं कि राजा और मन्त्रिदल का नाम “अश्वी” है। प्रजाओं को उचित है कि बड़ी-२ सभाओं में मन्त्रिदलसहित राजा को बुलाकर सत्कार करें। यहाँ रथ के बुलाने से राजा के बुलाने का तात्पर्य्य है। जो राजदल प्रजाओं में सदा अपनी उदारता प्रकट करते हों, वे आदरणीय हैं ॥१॥
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शिव शंकर शर्मा

अथ राजधर्मान् उपदिशति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अतूर्तदक्षा=हे अहिंसितबलौ। हे वृषणा=वृषणौ ! वृषण्वसू=वर्षणशीलधनौ ! हे अश्विनौ ! युवोः=युवयोः। रथम्। सूरिषु=विदुषां मध्ये। सधस्तुत्याय=सह स्तोतुम्। सुशोभनम्। हुवे=आह्वयामि। उ=इति प्रसिद्धम् ॥१॥